Bank Loan Action: जब कोई व्यक्ति लिए गए लोन का भुगतान नहीं कर पाता है, तो इसे लोन डिफॉल्ट (Loan Default) कहा जाता है। ऐसी स्थिति में बैंक या वित्तीय संस्थान कानूनी प्रक्रिया के तहत लोन वसूलने की कार्रवाई शुरू कर सकते हैं। यह प्रक्रिया नोटिस भेजने से लेकर प्रॉपर्टी की नीलामी तक जा सकती है। हालांकि, लोन लेने वाले उपभोक्ताओं के पास भी कुछ अधिकार होते हैं, जिनके बारे में जानकारी होना जरूरी है। सही जानकारी होने पर कोई भी व्यक्ति अपने हितों की रक्षा कर सकता है और कानूनी रूप से उचित कदम उठा सकता है।
बैंक द्वारा उठाए जाने वाले कदम
बैंक लोन डिफॉल्ट की स्थिति में सबसे पहले ग्राहक को इस बारे में सूचित करता है। यदि ग्राहक भुगतान नहीं कर पाता है, तो बैंक उसे एक्स्ट्रा टाइम देने का ऑप्शन देता है। अगर इसके बाद भी भुगतान नहीं किया जाता है, तो बैंक नोटिस जारी करता है और कानूनी कार्रवाई कर सकता है। इसमें कोर्ट में केस दर्ज करना, प्रॉपर्टी जब्त करना या सैलरी से कटौती जैसी प्रक्रिया शामिल हो सकती है।
लोन रिकवरी एजेंट के लिए नियम
लोन वसूली के लिए बैंक रिकवरी एजेंट (Loan Recovery Agent) नियुक्त कर सकते हैं, लेकिन उनके लिए कुछ नियम तय किए गए हैं।
- रिकवरी एजेंट उपभोक्ता को धमकी नहीं दे सकते।
- वे मानसिक या फिज़िकल प्रेशर नहीं डाल सकते।
- वे केवल तय समय में संपर्क कर सकते हैं, जो सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक होता है।
- वे किसी भी प्रकार की जबरदस्ती नहीं कर सकते।
अगर रिकवरी एजेंट इन नियमों का उल्लंघन करते हैं, तो उपभोक्ता बैंक और बैंकिंग ओम्बड्समैन (Banking Ombudsman) में शिकायत कर सकता है।
बिना नोटिस के बैंक कोई कार्रवाई नहीं कर सकता
किसी भी वित्तीय संस्थान को लोन की वसूली के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन करना जरूरी है। यदि किसी व्यक्ति ने अपनी प्रॉपर्टी गिरवी रखकर लोन लिया है और वह भुगतान नहीं कर पाता है, तो बैंक प्रॉपर्टी जब्त कर सकता है। हालांकि, इसके लिए बैंक को ग्राहक को पहले नोटिस देना अनिवार्य होता है। भारतीय कानून के तहत बिना नोटिस दिए कोई भी बैंक प्रॉपर्टी पर कब्जा नहीं कर सकता।
ग्राहकों के शिकायत दर्ज करने का अधिकार
यदि किसी ग्राहक को लगता है कि बैंक या रिकवरी एजेंट ने उनके साथ अनुचित व्यवहार किया है, तो वे शिकायत कर सकते हैं। शिकायत करने के लिए:
- सबसे पहले बैंक के संबंधित विभाग में कान्टैक्ट करें।
- अगर बैंक संतोषजनक जवाब नहीं देता है, तो बैंकिंग ओम्बड्समैन में शिकायत कर सकते हैं।
- उपभोक्ता अदालत में भी केस दर्ज कराया जा सकता है।
लोन डिफॉल्ट की स्थिति में कानूनी अधिकार
लोन डिफॉल्ट की स्थिति में बैंक और उपभोक्ता दोनों के लिए कुछ कानूनी प्रावधान हैं। इन प्रावधानों के तहत:
- एनपीए (NPA) कैटेगरी में डालने से पहले नोटिस – अगर कोई लोन अकाउंट 90 दिनों तक डिफॉल्ट रहता है, तो बैंक उसे नॉन परफॉर्मिंग एसेट (NPA) घोषित कर सकता है। इससे पहले बैंक को 60 दिन का नोटिस जारी करना जरूरी होता है।
- प्रॉपर्टी जब्ती से पहले नोटिस – अगर कोई ग्राहक नोटिस के बाद भी लोन का भुगतान नहीं कर पाता, तो बैंक प्रॉपर्टी को नीलाम कर सकता है। लेकिन इसके लिए 30 दिन का पब्लिक नोटिस देना जरूरी होता है।
- प्रॉपर्टी का सही मूल्यांकन – बैंक को प्रॉपर्टी की नीलामी से पहले उसका उचित मूल्यांकन करना होता है और इसकी जानकारी सार्वजनिक नोटिस में देनी होती है।
- एक्स्ट्रा अमाउन्ट वापस करने का प्रावधान – यदि नीलामी के बाद बैंक को लोन की बकाया राशि से अधिक रकम मिलती है, तो शेष राशि ग्राहक को लौटानी होती है।
लोन चुकाने के लिए बैंक से बातचीत का ऑप्शन
लोन डिफॉल्ट होने की स्थिति में ग्राहक को बैंक से बातचीत करनी चाहिए। कई बार बैंक ग्राहकों को पुनर्भुगतान का मौका देते हैं या ईएमआई को रीशेड्यूल करने का ऑप्शन प्रदान करते हैं। इसके लिए:
- बैंक से ईएमआई कम करने की रिक्वेस्ट की जा सकती है।
- पुनर्भुगतान की समयसीमा बढ़ाने के लिए आवेदन किया जा सकता है।
- लोन पुनर्गठन (Loan Restructuring) का ऑप्शन अपनाया जा सकता है।