Donkey Milk Price: हलारी नस्ल के गधे को आम गधों से अलग और खास माना जाता है। यह नस्ल गुजरात के हालार क्षेत्र में पाई जाती है और इसकी गधी के दूध को ‘लिक्विड गोल्ड’ कहा जाता है। हलारी नस्ल का गधा न केवल दुर्लभ है, बल्कि इसकी अनूठी विशेषताओं और दूध के गुणों के कारण इसे वीवीआईपी का दर्जा प्राप्त है।
हलारी गधी का दूध क्यों है इतना खास?
हलारी नस्ल की गधी का दूध पोषक तत्वों से भरपूर होता है। यह त्वचा के लिए बेहद लाभकारी माना जाता है और इसमें हाइड्रेटिंग और एंटी-एजिंग गुण होते हैं। इसका उपयोग कॉस्मेटिक प्रोडक्टों में किया जाता है, जिसमें साबुन, स्किन जैल, और फेस वॉश शामिल हैं। यही वजह है कि इसका दूध 5,000 से 7,000 रुपये प्रति लीटर तक बिकता है।
दूध की मांग
गधे का दूध न केवल त्वचा के लिए बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है। यह मानव दूध से काफी मिलता-जुलता है और गाय के दूध से एलर्जी वाले बच्चों के लिए एक बेहतरीन ऑप्शन है। इसमें इम्यूनिटी बढ़ाने, आंतों के माइक्रोफ्लोरा को सुधारने और एंटी-डायबिटिक गुणों के रूप में अद्भुत क्षमता होती है।
हलारी नस्ल के गधे क्यों हैं खतरे में?
हलारी गधे की आबादी अब तेजी से घट रही है। देश में केवल 439 हलारी गधे बचे हैं, जिनमें से केवल 110 नर हैं। गुजरात और राजस्थान में इस नस्ल की संख्या में 70% से अधिक की गिरावट दर्ज की गई है। यदि इनकी संख्या बढ़ाने के लिए तुरंत उपाय नहीं किए गए, तो यह नस्ल अगले पांच वर्षों में विलुप्त हो सकती है।
गधे के दूध का बिज़नेस यूज़
बीकानेर में स्थित राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (NRCE) हलारी नस्ल के गधों के संरक्षण और इनके दूध के व्यावसायिक उपयोग को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा है। इस दूध का उपयोग स्किनकेयर उत्पादों और औषधीय उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है। दक्षिण भारत के कर्नाटक और केरल में कुछ कंपनियां पहले से ही गधे के दूध का उपयोग करके प्रोडक्ट बना रही हैं।
हलारी नस्ल का महत्व
हलारी नस्ल के गधे को कम चारा और पानी की जरूरत होती है। ये जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होते हैं और छोटे किसानों के लिए आदर्श माने जाते हैं। इनके चराई की आदतें चरागाह पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में मदद करती हैं। इनकी विशेषताएं इन्हें स्थायी डेयरी फार्मिंग के लिए उपयोगी बनाती हैं।
हलारी नस्ल का नाम कैसे पड़ा?
हलारी गधे का नाम सौराष्ट्र के हलार क्षेत्र के संस्थापक जाम श्री हलाजी जडेजा के नाम पर पड़ा। यह नस्ल सफेद बालों और नरम स्वभाव के लिए जानी जाती है। यह अन्य गधों की तुलना में बड़े होते हैं, लेकिन घोड़ों से छोटे होते हैं।
हलारी नस्ल का संरक्षण: चुनौती और प्रयास
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने हलारी गधे को 2018 में स्वतंत्र नस्ल का दर्जा दिया। इसके बाद, कई संरक्षण कार्यक्रम शुरू किए गए। बीकानेर केंद्र में हलारी नस्ल के गधों की आबादी बढ़ाने और इनके आहार और जीवनशैली पर शोध किया जा रहा है। लक्ष्य है कि इस नस्ल की आबादी को 1,000 तक बढ़ाया जाए।
दूध की कीमत और बाजार में मांग
गधे का दूध थोक में 250 से 400 रुपये प्रति लीटर तक बिकता है। हालांकि, इसके स्किनकेयर और औषधीय उपयोग के कारण, इसकी कीमतें ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर 5,000 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच जाती हैं। दक्षिणी राज्यों में इसकी अधिक मांग है, जहां कॉस्मेटिक कंपनियां इसका ज्यादा उपयोग करती हैं।
दुनिया भर में गधे के दूध की प्रसिद्धि
गधे के दूध का उपयोग ऐतिहासिक रूप से भी किया गया है। मिस्र की रानी क्लियोपेट्रा अपनी त्वचा को सुंदर बनाए रखने के लिए गधे के दूध से नहाती थीं। आज भी वैश्विक स्तर पर कई कंपनियां इस दूध से कॉस्मेटिक उत्पाद बना रही हैं। यह दूध त्वचा को हाइड्रेट करता है, झुर्रियों को रोकता है और त्वचा की चमक बढ़ाने में मदद करता है।
स्थानीय किसानों के लिए अवसर
हलारी गधे का दूध किसानों के लिए एक बड़ी इनकम का सोर्स बन सकता है। बीकानेर केंद्र में मौजूद वैज्ञानिक किसानों को इस नस्ल के महत्व और इसके दूध की बढ़ती मांग के बारे में जानकारी दे रहे हैं। किसान एक फार्म में केवल पांच हलारी गधों के साथ प्रतिदिन 1,500 रुपये तक कमा सकते हैं।